रत्नशिखा टाइम्स के शीर्षक हस्तांतरण के बाद का यह पहला अंक सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। रत्नशिखा टाइम्स एक पत्र ही नही बल्कि एक आंदोलन है जिसकी रूपरेखा समय, परिस्थिति और काल के हिसाब से स्वनिर्मित हुई । पत्रकारिता के अपने डेढ़ दशक के कैरियर में मैने कई तरह के आंदोलन देखे। अघोषित रूप से जिसका संचालन मैने मीडिया को करते देखा। आरूषि हत्याकांड, दिल्ली का दामिनी रेपकांड, अन्ना आंदोलन जैसे कई साधारण से दिखने वाली घटनाओं को मीडिया ने न केवल असाधारण बना दिया बल्कि संपूर्ण भारत को एक भावना के साथ जोड़ते हुए समाज और कानून का मार्गदर्शन भी किया। मीडिया में रहने के बावजूद मीडिया के नजरिये को लेकर दिल में एक बात सदा से खटकती रही। किसी क्राइम न्यूज को तो मीडिया खूब तबज्जो देता है लेकिन देश की अर्थव्यवस्था की धुरी समझे जाने वाले किसानों के आंसू पोछने के लिए न तो उसके पास वक्त दिखा और न उनकी समस्याएं दिखाने का जज्बा । देश की सत्तर फीसदी आवादी का आधार कृषि है। हमारा देश भी कृषि प्रधान है, किसान हम सभी का अन्नदाता है, वह धूप, गर्मी, पाला, सर्दी और बरसात की थपेड़ों को सहता हुआ हमारे और हमारे परिवार के लिए अन्य उगाता है। उसके उगाये अन्य को खाकर हम दिनो दिन मोटे होते जा रहे हैंऔर वह दिनों दिन सूखता जा रहा है। आज न तो उसके पास अपनी फसल का दाम निर्धारण करने का अधिकार है और न ही पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए जबरियां अधिग्रहित की जा रहीं जमीनों को बचाने का कोई जरिया। विभिन्न प्रान्तों के कई किसान मित्रों ने मुझसे कृषि और किसानों की समस्याओं को लेकर पत्रिका या समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू करने काअनुरोध किया। लेकिन मैरे जैसे साधारण हैसियत वाले पत्रकार के लिए किसी समाचार पत्र का प्रकाशन आसान काम नही था। सोचते-सोचते पांच वर्ष बीत गये। पूरे पांच वर्ष बाद मैं अपने गांव गया तो यह देखकर कर दंग रह गया कि किस तरह से एक बाहर की कंपनी ने सरकार और कुछ जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ करके एक पावर प्रोजेक्ट के नाम पर तकरीबन पांच मजरों की बेशकीमती जमीन को कौड़ियों के भाव हथिया लिया, न उनकी बात जिला प्रशासन ने सुनी न सरकार ने और न अदालत ने। वजह सिर्फ एक थी कि उनकी आवाज को सही मंच तक ले जाता कौन? तभी मैने प्रण किया कि अब हालात चाहे जो हों मैं एक पत्र का प्रकाशन अवश्य करूंगा जो किसानों की आवाज बनेगा। मैने अपने कई मित्रों से इस संबन्ध में चर्चा कर सहयोग मांगा। दूरदर्शन केन्द्र पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक निशब्द की सहनिर्माता रहीं श्रीमती शिखा रत्नाकर जी इन्दिरानगर लखनऊ से विगत 16 वर्षों से रत्नशिखा टाइम्स साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन कर रहीं थी, मैने उनसे देश के किसानों की दिशा और दशा की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए उस पत्र को कृषि विषयक बनाने का अनुरोध किया। मेरी बातों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। दूसरे रोज ही उनके पति रत्नाकर मौर्य जी हमारे पास आये और कहा कि, शिखा मैम ने अपना अखवार न केवल कृषि विषयक बनाने की स्वीकृति देदी है बल्कि आपके नाम इसका स्वामित्व हस्तांतरित करने का प्रस्ताव भी उन्होने भेजा है। यह एक वाक्य मेरे लिए असाधारण था। मेरी किसानों के प्रति उमड़ी सच्ची श्रृद्धाभावना की यह पहली जीत थी। बीते 19 अक्टूबर को शिखा रत्नाकर मैम ने शीर्षक हस्तारण के पेपरों पर फाइनल हस्ताक्षर करते हुए मुझे रत्नशिखा टाइम्स का स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक व संपादक बनने का सौभाग्य प्रदान किया। 22 से 28 अक्टूबर के बीच मेरे संपादन में निकलने वाला यह पहला अंक है। मुझे अपने पाठकों, मित्रों, हॉकर बन्धुओं एवं सहयोगी विज्ञापन दाताओं पर पूरा भरोसा है कि वह पूर्व की भांति मुझे अपना सहयोग और स्नेह प्रदान करते रहेंगे। सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
आपका
एस.वी.सिंह 'उजागर' संपादक रत्नशिखा टाइम्स