देश की पहली पूर्णकालिक महिला वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार, पांच जुलाई को संसद में साल 2019-20 का बजट पेश किया । बजट में तमाम तरह की घोषणाएं की गई और लक्ष्य निर्धारित किये गए।
साभार गूगल न्यूज/आर.टी. डेस्क लखनऊ। बजट पेश कर रहीं निर्मला सीतारमण जब किसान और किसानी पर आई तो उन्होंने एकबार फिर मूल की ओर लौटने पर जोर दिया। _अपने बजटीय भाषण के दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमें एक बार फिर जीरो बजट किसानी की ओर लौटने की ज़रूरत है। उन्होंने जीरो बजट खेती पर जोर देते हुए कहा कि हमें इस पद्धति को पूरे देश में लागू करने की जरूरत है। जाने क्या है जीरो बजट खेती आसान शब्दों में कहें तो जीरो बजट किसानी का मतलब है कि वो खेती जिसे करने के लिए किसान को किसी भी तरह की कर्ज न लेना पड़े। इस तरह की खेती में किसी भी कीटनाशक, रासायनिक खाद और आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह खेती पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होती रासायनिक खाद की जगह इसमें देसी खाद और प्राकृतिक चीज़ों से बनी खाद का इस्तेमाल किया जाता है। __ हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत उन लोगों में से हैं जो जीरो बजट वाली प्राकृतिक कृषि के समर्थक हैं। __ आखरि क्या है जीरो बजट खेती और इस अपनाया जाना क्यों ज़रूरी है । जीरो बजट खेती ..मोदी सरकारकिसानों प्राकृतिक कृषि है. ये भारत में परंपरागत रूप से हजारों साल तक की गई है। इसमें एक देसी गाय से हम 30 एकड़ तक की खेती कर सकते हैं। इस पद्धति से हमारा उत्पादन कम नहीं होता। जितना उत्पादन रासायनिक खेती से होता है, इसमें भी उत्पादन उतना ही रहेगा। रासायनिक खेती में लागत बहुत आती है जबकि इसमें लागत न के बराबर है। ..कैसे होती है जीरो बजट खेती इसमें प्लास्टिक का ड्राम ले लेते हैं। उसमें 180 लीटर पानी डाल लेते हैं. देसी गाय रात और दिन में आठ किलोग्राम तक गोबर देती है। इतना ही गोमूत्र देती है. वो उस पानी में मिलाते हैं। डेढ़ से दो किलो गुड़, डेढ़ से दो किलो किसी दाल का बेसन और एक मुट्ठी मिट्टी । ये सब चीज किसान ही पैदा करता है। इन सबका घोल बनाते है. पांच दिन इसको घोल देते हैं। पांचवें दिन एक एकड़ के लिए खाद तैयार हो जाती है। ..प्राकृतिक खेती करने के क्या लाभ हैं? आज के समय में ग्लोबल वार्मिंग बहुत बड़ी समस्या बन गई है। इसे बढ़ावा देने में रासायनिक खेती का बहुत बड़ा योगदान है। ऐसे में प्राकृतिक खेती से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है। ऐसा करने से जमीन की उर्वरा शक्ति भी बचेगी। पानी की 60 से 70 प्रतिशत तक बचत भी होगी। रासायनिक खेती करने से पहले देश में कैंसर और डायबिटीज़ प्रचलित नहीं था। रासायनिक खेती की वजह से ऐसे अनेक असाध्य रोग पैदा हो गए हैं और हमारे खान-पान में इतना रसायन और कीटनाशक शामिल हो गया है जो सीधे हमारे स्वास्थ्य पर असर डाल रहे हैं। हालांकि अब भी ये पद्धति देश के किसानों के बीच लोकप्रिय है। लाखों किसान इस पद्धिति से खेती करते हैं। लेकिन सरकार और विश्वविद्यालयों के जरिए रासायनिक खेती का प्रचार होता है। अब भारत सरकार ने इस पद्धिति को स्वीकार कर लिया है तो तेजी से इसका प्रचार बढ़ेगा। ..भारत में ऐसी खेती करना आसान है हम हिमाचल प्रदेश में 2022 तक पूरे प्रदेश को प्राकृतिक खेती प्रदेश घोषित करना चाहते हैंपिछले साल हमने पांच सौ किसानों को जोड़ा तो तीन हज़ार लोग आ गए. इस साल हम 50 हज़ार किसानों को जोड़ेंगे।अपना खेत है गुरुकुल कुरुक्षेत्र में, दो सौ एकड़, जिसमें मैं पिछले नौ साल से प्राकृतिक खेती करता हूं। जो इसी पद्धति से की जाती है। भारत के अनेक मंत्री उसे देख चुके हैं. सितंबर में कृषि मंत्री भी उस मॉडल को देखने के लिए आ रहे हैं।
publish on: लखनऊ, मंगलवार, 22 से 28 अक्टूबर 2019 तक