सोते अधिकारी, रोते बागवां...

सोते अधिकारी, रोते बागबान......  मैंगो परिशिष्ठ की पहली सीरीज है। जिसमें हम इसकेउत्पादन से लेकर विपड़न तक बागबान और उससे संबन्धित लोगों की समस्याओं और एस.वी.सिंह उजागर |दिक्कतों को सिलसिले बार प्रकाशन करने वाले -हैं। रत्नशिखा टाइम्स की टीम ने नवम्बर 2019 से मैंगों उत्पादकों, बागबानों, ठेकेदारों, आढ़तियों, ट्रान्सपोटरों, कृषिविभाग के अधिकारियों, वैज्ञानिकों, पेस्टीसाइड के विक्रेताओं और उनके निर्माताओं से मैंगो व्यापार से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उनकी समस्याओं, दिक्कतों और दर्द को सुना, जाना एवं समझा। कृषि और किसानों के लिए काम करने वाली विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों तथा आम से विभिन्न तरह का उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियों से विस्तृत चर्चा की गयी। चर्चा के दौरान प्रत्येक स्तर पर एक बात उभर कर सामने आयी वह है कि, हमारे यहां गुड एग्रीकल्चरल प्रेक्टिश न होने के चलते किसान अपनी क्रॉप का न तो उत्पादन ठीक से ले पाता और न ही उसके प्रोडक्ट्स की क्वालिटी इतनी अच्छी बन पाती है कि वह बाहर एक्सपोर्ट के काबिल हो। लिहाजा बिकवाली का समय आते ही लोकल मंडियों में वह उत्पाद बेचना उसकी मजबूरी बन जाती है। जिन अधिकारियों को गुणवत्ता बनाये रखने और जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी शासन व सरकार की तरफ से मिली है वह ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने की वजाय चंद पैसे के लालच में भ्रष्टाचार को पलने एवं पोसने में सहायक हो रहे हैं । गुणवत्ता और लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर जिन कीटनाशकों को सरकार ने बैन कर दिया है, वे कीटनाशक आम की फसल पर इन्ही अधिकारियों की शह पर धड़ल्ले से बिक रहे हैं। फल और सब्जियां उगाने वाला किसान नही जानता कि वह जिन घातक रसायनों का प्रयोग अपनी फसलों पर कर रहा हैउसके क्या घातक दुश्परिणाम हो सकते हैं ? जिन रसायनों को वह आंख बंद कर इस्तेमाल किये जा रहा है उससे उसकी फसल अच्छी होगी या खराब इस बात से वह एक दम बेखबर है। रत्नशिखा टाइम्स का प्रयास किसानों को जागरूक करने के साथसाथ सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार के दीमक को बाहर निकालना भी है। सरकार किसान की आय दूनी करने का चाहे जितना दम भर ले यह तब तक संभव नही हो सकता जब तक किसानों को उनके अधिकार और कर्तव्य की जानकारी नही हो जाती। यह तब तक संभव नही हो सकता जब तक अफसरों की आंखो में लालच के कीड़े बिजबिजाते रहेंगे। यह तब तक संभव नही होगा जब तक कंपननियों की मुनाफाखोरी आदतों पर नकेल नही कसी जायेगी। यह तब तक संभव नही होगा जब तक मंडियों की दिशा और दशा के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्यवाही नही होगी। यह तब तक संभव नही होगा जब तक बनायी जा रही योजनओं के क्रियान्वन और आवंटित बजट का हिसाब सरकार नही लेगी। तय मानकों के कीटनाशक क्या हैं, उनके क्या फायदे और नुकसान हैं, जब तक प्रोपर सिस्टम के तहत किसानों को यह जानकारी नही होगी तब तक उसके द्वारा अपनाया गया हर तरीका आत्मघाती होगा। राजधानी से सटे तीन प्रमुख जिलों उन्नाव, लखनऊ और सीतापुर के बाद सहारनपुर, शाहजहापुर के तकरीबन 100 किमी. सराउंडिग एरिया में व्यवसायिक रूप से आम की खेती होती है। यहां के किसानों की आर्थिक दशा पूरी तौर पर आम पर ही निर्भर है। मलिहाबाद का दशहरी तो पूरी दुनियां में मशहूर है। यहां से 40 किमी के सराउन्डिंग मेंदशहरी, चौसा, लंगड़ा और सफेदा आम बहुतायात मात्रा में पैदा किया जाता है लेकिन गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिश के अभाव में यहां का आम एक्सपोर्ट के मानकों पर खरा नही उतर पाता। पीक सीजन में यहां के खुदरा मार्केट में आम 10 से 15 रूपये प्रति किलो पहुंच जाता है जिसे किसान के पास से महज 500 से 700 रूपये प्रति क्विंटल में खरीदा जाता है जो उसकी लागायत से आधे दामों का होता है। आम व्यवसाय से जुड़ी हर कड़ी पर रत्नशिखा टाइम्स सीजन भर अपने विभिन्न अंको में समीक्षाओं के माध्यम से विभिन्न तरह की जानकारी पाठकों, सरकार और बागबानों को उपलब्ध कराने की योजना है। हमेशा की तरह सभी का सहयोग और प्यार मिलता रहेगा ऐसी आशा है। -संपादक